The saying of Hazrat Ali Raziyallahu Anhu :
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तालीम है कि जिस शख्स से भी आपने इल्म का एक हरफ़ सीख लिया वह आपका उस्ताद हो गया।
.इंग्लिश में जिसे हिप्नॉटिज़्म कहा जाता है दरअस्ल वह हठयोग (Hathyoga) के ‘त्राटक‘ का एक बहुत ही छोटा सा रूप है। सन् 1988 ई. में जब मैं सीसीआर डिग्री कॉलिज, मुज़फ़्फ़रनगर से B . Sc. (Bio .) कर रहा था, तब मुझे वहां के रेलवे बुक स्टाल से यह किताब मिली थी। किताब मिलते ही मैंने ‘दीपक त्राटक‘ का अभ्यास शुरू कर दिया। शुरू में काफ़ी कठिनाई हुई लेकिन फिर मैं काफ़ी देर तक अपलक दीपक को आराम से देखने का अभ्यस्त हो गया था। उसी अभ्यास का एक लाभ मुझे आज यह मिल रहा है कि घंटों कम्प्यूटर की स्क्रीन को अपलक देखना मेरे लिए सहज है। इसे मैंने ‘स्क्रीन त्राटक‘ का नाम दिया है।
हिप्नॉटिज़्म को उर्दू में ‘अमल ए तन्वीम‘ कहा जाता है। जनाब रईस अमरोहवी साहब ने इस पर काफ़ी काम किया है। ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ उनकी एक बड़ी दरयाफ़्त है। यह भी मेरी आज़माई हुई मश्क़ है और यह पहले दिन से ही फ़ायदा पहुंचाने लगती है।
‘तसव्वुफ़‘ (Sufism) की रियाज़तों में यह हिप्नॉटिज़्म खुद ब खुद सिद्ध हो जाता है। अलग से न तो ‘त्राटक‘ करना पड़ता है और न ही ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ की ही कोई ज़रूरत रह जाती है। ‘टेलीपैथी‘ (telepathy) भी खुद ब खुद मिल जाती है।
कुछ लोग शिकायत करते हैं कि हमने इन विषयों पर किताबें तो बहुत पढ़ी हैं लेकिन इन विद्याओं का माहिर कोई भी नज़र नहीं आता।
उन्हें जान लेना चाहिए कि उन्होंने ढंग से ढूंढा ही नहीं होगा वर्ना हरेक विद्या के जानकार प्रायः भारत में हैं। उन तक वह आदमी ज़रूर पहुंच जाता है जिसे वास्तव में तलाश है।
बहरहाल श्रीमाली जी की यह किताब निस्संदेह हिप्नॉटिज़्म के विषय पर एक बेमिसाल किताब है। जब किताब है तो इसका लेखक भी है और लेखक खुद एक अच्छे ‘हिप्नॉटिस्ट‘ हैं।
आपके लिए पेश है किताब के लेखक का लिंक (Owner of the book)
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तालीम है कि जिस शख्स से भी आपने इल्म का एक हरफ़ सीख लिया वह आपका उस्ताद हो गया।
इस उसूल के मद्देनज़र पंडित श्री नारायणदत्त श्रीमाली जी (Jaipur , India) को भी मैं अपना गुरू मानता हूं। मैंने हिप्नॉटिज़्म पर उर्दू, हिंदी और इंग्लिश में जितना भी साहित्य (लितेरतुरे) पढ़ा है, उनमें से कोई भी किताब मुझे उनकी किताब से ज़्यादा बेहतर नहीं लगी। उनकी किताब का नाम है ‘प्रैक्टिकल हिप्नॉटिज़्म‘ (Practical Hypnotism) और यह पुस्तक महल, दिल्ली (Pustak Mahal , Delhi) से प्रकाशित हुई है।
.इंग्लिश में जिसे हिप्नॉटिज़्म कहा जाता है दरअस्ल वह हठयोग (Hathyoga) के ‘त्राटक‘ का एक बहुत ही छोटा सा रूप है। सन् 1988 ई. में जब मैं सीसीआर डिग्री कॉलिज, मुज़फ़्फ़रनगर से B . Sc. (Bio .) कर रहा था, तब मुझे वहां के रेलवे बुक स्टाल से यह किताब मिली थी। किताब मिलते ही मैंने ‘दीपक त्राटक‘ का अभ्यास शुरू कर दिया। शुरू में काफ़ी कठिनाई हुई लेकिन फिर मैं काफ़ी देर तक अपलक दीपक को आराम से देखने का अभ्यस्त हो गया था। उसी अभ्यास का एक लाभ मुझे आज यह मिल रहा है कि घंटों कम्प्यूटर की स्क्रीन को अपलक देखना मेरे लिए सहज है। इसे मैंने ‘स्क्रीन त्राटक‘ का नाम दिया है।
हिप्नॉटिज़्म को उर्दू में ‘अमल ए तन्वीम‘ कहा जाता है। जनाब रईस अमरोहवी साहब ने इस पर काफ़ी काम किया है। ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ उनकी एक बड़ी दरयाफ़्त है। यह भी मेरी आज़माई हुई मश्क़ है और यह पहले दिन से ही फ़ायदा पहुंचाने लगती है।
‘तसव्वुफ़‘ (Sufism) की रियाज़तों में यह हिप्नॉटिज़्म खुद ब खुद सिद्ध हो जाता है। अलग से न तो ‘त्राटक‘ करना पड़ता है और न ही ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ की ही कोई ज़रूरत रह जाती है। ‘टेलीपैथी‘ (telepathy) भी खुद ब खुद मिल जाती है।
कुछ लोग शिकायत करते हैं कि हमने इन विषयों पर किताबें तो बहुत पढ़ी हैं लेकिन इन विद्याओं का माहिर कोई भी नज़र नहीं आता।
उन्हें जान लेना चाहिए कि उन्होंने ढंग से ढूंढा ही नहीं होगा वर्ना हरेक विद्या के जानकार प्रायः भारत में हैं। उन तक वह आदमी ज़रूर पहुंच जाता है जिसे वास्तव में तलाश है।
बहरहाल श्रीमाली जी की यह किताब निस्संदेह हिप्नॉटिज़्म के विषय पर एक बेमिसाल किताब है। जब किताब है तो इसका लेखक भी है और लेखक खुद एक अच्छे ‘हिप्नॉटिस्ट‘ हैं।
आपके लिए पेश है किताब के लेखक का लिंक (Owner of the book)
पंडित श्री नारायणदत्त श्रीमाली जी |