Tuesday, January 18, 2011

हिप्नॉटिज़्म हठयोग के ‘त्राटक‘ का एक बहुत ही छोटा सा रूप है Hypnosis or Mesmerism

The saying of Hazrat Ali Raziyallahu Anhu :
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की तालीम है कि जिस शख्स से भी आपने इल्म का एक हरफ़ सीख लिया वह आपका उस्ताद हो गया।
इस उसूल के मद्देनज़र पंडित श्री नारायणदत्त श्रीमाली जी (Jaipur , India)  को भी मैं अपना गुरू मानता हूं। मैंने हिप्नॉटिज़्म पर उर्दू, हिंदी और इंग्लिश में जितना भी साहित्य (लितेरतुरे) पढ़ा है, उनमें से कोई भी किताब मुझे उनकी किताब से ज़्यादा बेहतर नहीं लगी। उनकी किताब का नाम है ‘प्रैक्टिकल हिप्नॉटिज़्म‘ (Practical Hypnotism) और यह पुस्तक महल, दिल्ली (Pustak Mahal , Delhi) से प्रकाशित हुई है।

.इंग्लिश में जिसे हिप्नॉटिज़्म कहा जाता है दरअस्ल वह हठयोग (Hathyoga)  के ‘त्राटक‘ का एक बहुत ही छोटा सा रूप है। सन् 1988 ई. में जब मैं सीसीआर डिग्री कॉलिज, मुज़फ़्फ़रनगर से B . Sc. (Bio .) कर रहा था, तब मुझे वहां के रेलवे बुक स्टाल से यह किताब मिली थी। किताब मिलते ही मैंने ‘दीपक त्राटक‘ का अभ्यास शुरू कर दिया। शुरू में काफ़ी कठिनाई हुई लेकिन फिर मैं काफ़ी देर तक अपलक दीपक को आराम से देखने का अभ्यस्त हो गया था। उसी अभ्यास का एक लाभ मुझे आज यह मिल रहा है कि घंटों कम्प्यूटर की स्क्रीन को अपलक देखना मेरे लिए सहज है। इसे मैंने ‘स्क्रीन त्राटक‘ का नाम दिया है।
हिप्नॉटिज़्म को उर्दू में ‘अमल ए तन्वीम‘ कहा जाता है। जनाब रईस अमरोहवी साहब ने इस पर काफ़ी काम किया है। ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ उनकी एक बड़ी दरयाफ़्त है। यह भी मेरी आज़माई हुई मश्क़ है और यह पहले दिन से ही फ़ायदा पहुंचाने लगती है।
‘तसव्वुफ़‘ (Sufism)  की रियाज़तों में यह हिप्नॉटिज़्म खुद ब खुद सिद्ध हो जाता है। अलग से न तो ‘त्राटक‘ करना पड़ता है और न ही ‘अमल मश्क़ तनफ़्फ़ुस ए नूर‘ की ही कोई ज़रूरत रह जाती है। ‘टेलीपैथी‘ (telepathy) भी खुद ब खुद मिल जाती है।
कुछ लोग शिकायत करते हैं कि हमने इन विषयों पर किताबें तो बहुत पढ़ी हैं लेकिन इन विद्याओं का माहिर कोई भी नज़र नहीं आता।
उन्हें जान लेना चाहिए कि उन्होंने ढंग से ढूंढा ही नहीं होगा वर्ना हरेक विद्या के जानकार प्रायः भारत में हैं। उन तक वह आदमी ज़रूर पहुंच जाता है जिसे वास्तव में तलाश है।
बहरहाल श्रीमाली जी की यह किताब निस्संदेह हिप्नॉटिज़्म के विषय पर एक बेमिसाल किताब है। जब किताब है तो इसका लेखक भी है और लेखक खुद एक अच्छे ‘हिप्नॉटिस्ट‘ हैं।
आपके लिए पेश है किताब के लेखक का लिंक  (Owner of the book)
पंडित श्री नारायणदत्त श्रीमाली जी

6 comments:

Taarkeshwar Giri said...

Aaaj di hai aapne kam ki jankari. tanik hamko bhi koi tarika bataiye

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

Interesting information.

मीनाक्षी said...

आज पहली बार यहाँ आना हुआ...आजकल बेटा इसी विषय पर बात करता है और अपने अर्थराइटिस के दर्द को दूर करने के लिए अभ्यास भी करता है... आपका लेख पढकर तसल्ली हो गई..शुक्रिया..

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है

मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें

कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.

मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.